क्षेत्रवाद का अर्थ तथा अवधारणा : क्षेत्रवाद से तात्पर्य किसी भी देश के उस हिस्से से है ‘ जो सामाजिक , आर्थिक , राजनैतिक व भौगोलिक आदि कारणों से अपने पृथक आस्तित्व के निर्माण हेतु प्रयासरत है |
अवधारणा : क्षेत्रवाद एक ऐसी अवधारणा है जो राजनैतिक , सांस्कृतिक ,आर्थिक और वैचारिक रूप से क्षेत्र विशेष के हितु को सर्वपरि मानता है|
क्षेत्रवाद के प्रकार
- सुप्रा स्टेट
- इंट्रा स्टेट
- इंटर स्टेट
भारत में क्षेत्रवाद से उत्प्न्न समस्याएं / चुनौतियां :
- बार – बार नए राज्यों के गठन से देश की एकरूपता व अखंडता पर नकरात्मक परभाव पड़ता है |
- विकास के वायदे कर लोगो के धार्मिक विशवास का प्रयोग वोट बैंक के तौर पर किया जाता है |
- इसके चलते प्रत्येक हित के समहू अथार्त नेता , उद्धयोगपति व राजनीतिज्ञ अपने अपने क्षेत्रो को बढ़ावा देते है |
समाधान :
- राज्यों की समस्या व जरूरतों को समझने के लिए निति आयोग को और बहेतर तरीके से कार्य करने की जरुरत है |
- अनुछेद -263 में उल्लेखित अन्तर्राज्य परिषद संस्था के द्वारा दिए गये सुझाव पर राज्य सरकार को ध्यान देने की आवशयकता है
- केंद्र सरकार द्वारा प्राकर्तिक व खनिज संसाधनों का बॅटवारा राज्य की जरूरतों को ध्यान में रख कर करना चाइये |
- केंद्र सरकार की वे सभी योजनायें जो आर्थिक व सामाजिक रूप से पिछड़े छेत्रो पर केंद्रित है, का किर्यान्वयन व निगरानी सही ढंग से होनी चाहिए |