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भारत में समान नागरिक संहिता | UNIFORM CIVIL CODE IN INDIA (UPSC )

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समान नागरिक संहिता के अनुसार समाज के सभी वर्गो के साथ एक समान व्यवहार तथा एक समान कानून लागु किया जायगा चाहे उनका धर्म कुछ भी हो | इसके अंतर्गत विवाह , रखरखाव ,विरासत , संम्पति आदि विषय आते है |

समान नागरिक संहिता पर संवैधानिक दृष्टिकोण :

  • राज्य के निति निर्देशक सिद्धांत : संविधान के भाग-4 के अनुछेद -44 में कहा गया है की राज्य अपने नागरिको के लिए पुरे भारत में एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा |
  • धर्म निरपेक्षता : भारतीय संविधान धर्म निरपेक्षता के सिद्धांत को स्थापित करता है , जो धर्म और राज्य को अलग करने का आदेश देता है | UCC को सभी नागरिको के साथ उनकी धार्मिक सद्भावना की परवाह किये बिना समान व्यवहार सुनिश्चित करके धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देने के रूप में देखा जाता है |
  • समानता और गैर -भेधभाव : संविधान का अनुछेद -14 के तहत कानून के समक्ष समानता की गारंटी देता है और धर्म ,नस्ल ,जाति , लिंग या जन्म के स्थान पर भेदभाव को रोकता है |

विधि आयोग के विचार :

भारत का 21 वा विधि आयोग ने कहा की समान नागरिक संहिता का मुद्दा व्यापक है और इसके संभावित प्रभाव भारत में अप्रयुक्त है और इस स्तर पर UCC न तो आवश्यक है न ही वांछनीय है |

सुप्रीमस कोर्ट से संबंधित मामले :

  • शाह बानो केस (1985 ) : SC ने लंबे समय के बाद भी अपने पीटीआई से भरण -पोषण का दावा करने के मुस्लिम महिला के अधिकार को सुरक्षित रखा |
  • सरला मुद्गल (1995 ) : कोई हिन्दू पति अपनी पहली शादी ख़त्म किये बिना इस्लाम धर्म अपना कर दूसरी शादी नहीं कर सकता |
  • शायरा बानो मामला (2017 ) : तीन तलाक को असंवैधानिक और मुस्लिम महिलाओ की गरिमा और समानता का उलंघन करार दिया तथा सिफारिश की संसद मुस्लिम विवाह और तलाक को विनियमित करने के लिए एक कानून बनाए |

UCC के पक्ष में तर्क :

  • UCC राष्ट्रिय एकता को बढ़ावा देते हुए आम पहचान बनाएगा | यह सभी धर्मो के साथ समान व्यवहार तथा सांप्रदायिक विवादों को कम करके धर्म निरपेक्षता को बढ़ावा देगा |
  • यह व्यक्तिगत कानूनों को मानवाधिकार और संवैधानिक मूल्यों के साथ जोड़ता है | यह तीन तलाक और बाल विवाह को ख़त्म करता है |
  • वोट बैंक की राजनीती को कम करने में मदद मिलेगी |
  • यह प्रत्येक भारतीय को उसकी जाति ,धर्म या जनजाति के बावजूद , एक राष्ट्रिय नागरिक आचार संहिता के तहत लाने में मदद करेगी |

विपक्ष में तर्क :

  • यह बहुसंख्यक विचारो को थोप सकता है और उनके संवैधानिक आधिकारो को कमजोर कर सकता है | विशेष रूप से धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देने वाले अनुछेद -25 को |
  • व्यक्तिगत कानून धार्मिक मान्यताओं से बने है उनका कहना है की इससे विभिन धार्मिक समुदायों के बीच दुश्मनी तथा तनाव पैदा होने का खतरा है |

UCC को लागु करने में चुनौतियाँ :

  • समानता का अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता एक दूसरे के विरोधी है |
  • अल्पसंख्यको को चिंता है की एकरूपता के नाम पर बहुसंख्यको की संस्कृति उन पर थोप दी जायगी |
  • मुद्दे की जाटिलता और संवेदनशीलता के कारण राजनितिक इच्छा शाक्ति की कमी |
  • विभिन धार्मिक समुदायो के अलग -अलग व्यक्तिगत कानून है जो बहस के राजनीतिकरण का कारण बनता है |

निष्कर्ष :

हालाँकि संविधान का अनुछेद -37 स्वंय यह स्पष्ट करता है की DPSP किसी भी न्यायालय द्वारा लागु नहीं किया जायगा | फिरभी वे देश के शासन में मौलिक है इससे यह पता चलता है की हमारा संविधान स्वंय मानता है की समान नागरिक संहिता को किसी न किसी रूप में लागु किया जाना चाहिए , लेकिन वः इसे कर्यान्व्यन के लिए अनिवार्य नहीं बनाता है |

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